धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
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उदाहरण: विज्ञपित − वि (उपसर्ग) ज्ञापितसंसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की' − लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
"धूल" पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
"हीरा वही घन चोट न टूटे"- का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए −1. लेखक 'बालकृष्ण' के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?
श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
(क) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −1. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
हीरे के प्रेमी उसे किस रुप में पसंद करते हैं?